क्या शाश्वत है, क्या क्षणभंगुर, जो है उसकी प्रतिश्रुति मौजूद है...
खूब डूबे खूब उतराये
वाकई डूब गये...सुन्दर गज़ल..
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2 comments:
खूब डूबे खूब उतराये
वाकई डूब गये...सुन्दर गज़ल..
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