Monday, March 1, 2010

फेथ..रीबिल्ट


मे
ट्रो स्टेशन के कॉफी हाउस में केन की कुर्सी में धंस कर पसरा हुआ वो कह रहा था, ‘……तुम्हें मैं अक्सर कहता हूं ना कि हार जाऊंगा टूटूंगा नहीं...तो बस ये जान लो कि मैं टूट नहीं सकता..घुटने नहीं टेकूंगा...हार नहीं मानूंगा चाहे पूरी तरह से जख्मी हो कर आखिरी सांस तक मुझे पछाड़ने में जुटी रहे जिन्दगी..मैं गिर कर जमीन पर रूड़ कर भी एक हाथ से लड़ता रहूंगा...। आखिरी वाक्य बोलते समय उसका दांया हाथ हवा में ऐसा लहलहा रहा था जैसे वो वाकई जमीन पर पसर कर तलवार धांय धांय चलाए चला जा रहा हो।

मैं बोला, ‘हारने और टूटने में क्या फर्क है...आप जब टूट गए तो आप तब हार गए..बस..यही तो...हारना टूटना ही तो है...। जब आपको लगा कि आप टूट गए तब आपने मान लिया एक तरह से कि आप हार गए...‘

बोला, ‘नहीं पागल हारने और टूटने का फर्क यही तो है कि आप नहीं कहोगे कि मैं हारा...अपनी नस नस फड़वा लोगे...नुंचवा लोगे खुद को..पर कहोगे कि लेट मी ट्राई..लेट माई लक ट्राई..लेट मी हैव फेथ ...दैट आई मे विन..दैट आई कैन विन...।‘

और कब्रिस्तान में हवा का झोंका आया...कुछ सूखे पत्ते यहां से वहां ऐसे दौड़े जैसे तेज हवा में उड़ते हुए रेशमी बाल पूरे चेहरे को अगड़म बगड़म ढक लेते हैं और अच्छा लगता है...। हारना और टूटना दो अलग अलग चीजें हैं..यानी कब्रिस्तान की मौत नहीं हुई है। वो आराम की सख्त जरूरत महसूसते जिंदों का ठिकाना है।

2 comments:

मुंहफट said...

होली पर आपकी बेहतर रचना और होली, दोनों को हार्दिक शुभकामनाएं........www.sansadji.com

Udan Tashtari said...

फिर फिर पढ़ना पड़ेगा..

यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।