सु
ख क्या होता है? सुख के चार लम्हे क्या सुख दे जाते हैं? या सुख को और निचोड़ कर सुखा जाते हैं? हंसी के चार ठहाके जब शांत होते हैं तो क्या उजाड़ हसरतें नहीं छोड़ जाते?कैसी कड़ी मेहनत करवाती है, जबरदस्ती की हंसी। कितना बदसूरत हो उठता है चेहरा जबरन होठों को खींच कर हंसी क्रिएट करने में। जिसने जिन्दगी में एक बार हंस ली यह हंसी, कौन जानता है कि यह हंसी फिर कब कब कितनी ही बार लौट लौट कर नहीं आएगी। और उसे इसे स्वीकारना ही होगा।
हंसिए तो दिल खोल कर- डॉयलॉग अच्छा है। हंसिए तो दिल खोल कर जैसे स्वीकार किए जा चुके साहित्य को रविवार की रात को होलिका दहन के दौरान भस्म कर देना चाहिए। बचपन से जिन सूक्ति वाक्यों को सुन सुन कर पढ़ पढ़ कर घोल घोल कर हम पीते आए...सालों की ज़िन्दगी गुजार देने के बाद पता चलता है हरेक की ज़िन्दगी अपने लिए खुद एक महाकाव्य रचती है। बीतते बीतते। ये बात और है कि आप अगले जन्म (यदि पुर्नजन्म में यकीं रखते हों तो) में इस महाकाव्य का प्रयोग नहीं कर पाएंगे। जन्म से लेकर मृत्यु तक रचा गया हर यह महाकाव्य मृत्यु के बाद नष्ट हो जाता है। हर जन्म में हर योनि में हर युग में...बार बार हर बार फिर से शुरू..होती है रचना।
रक्त संबंधों की, देह संबंधों की, व्यक्तिगत संबंधों की, प्रेम संबंधों की, अनाम संबंधों की एक कभी न खत्म होने वाली पर हर बार नई रचना।