Monday, March 8, 2010

धरती और आसमान बीच

हंसने गुनगुनाने
रोने गुदगुदाने
मुस्कुराने शर्म से
और जबरन मुस्कुराने,

शाम और रात के
रात और ख्वाब के
बात और चुप के
प्रेम और प्यास के,


गर्भ और पात में
स्नेह और बेस्वाद में
फिजूल और काम में
कल में और आज में,

एकांत और साथ- बीच
धोखे और विश्वास- बीच
डर और प्रताप- बीच
लय और सिद्धांत- बीच


तुम हो परिणति
तुम से ही सृष्टि
तुम ही हो कालजयी
जीवन की आकृति।

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यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।