हंसने गुनगुनाने
रोने गुदगुदाने
मुस्कुराने शर्म से
और जबरन मुस्कुराने,
शाम और रात के
रात और ख्वाब के
बात और चुप के
प्रेम और प्यास के,
गर्भ और पात में
स्नेह और बेस्वाद में
फिजूल और काम में
कल में और आज में,
एकांत और साथ- बीच
धोखे और विश्वास- बीच
डर और प्रताप- बीच
लय और सिद्धांत- बीच
तुम हो परिणति
तुम से ही सृष्टि
तुम ही हो कालजयी
जीवन की आकृति।
No comments:
Post a Comment