क्या है ऐसा जो डुबो देता है बार बार
क्या है ऐसा जो दम घोंट देता है बार बार
डूबने और दम को घोंटने की प्रक्रिया का अंत
मर कर होता है
क्या है तुममे ऐसा जो मरता ही नहीं मर कर भी बार बार
मैंने फिर देखा तुम्हारी आंखों में
तुम मेरी कुछ भी नहीं
तुम्हारी जिंदगी मुझे एक अजीब परिघटना लगती है
अपने आस पास घटती सी
मंडी हाउस के श्रीराम सेंटर में
सुपरहिट होता जा रहा
एक पीड़ामय नाटक
पर तुम नाटक नहीं हो
मैं जानता हूं
तुम्हारा डूब जाना
नाटक नहीं है
मैं जानता हूं
और, इसीलिए हैरान हूं
कि कैसे बच जाती हो तुम
बार बार डूब कर
पीएचडी करते हुए
तुम पानी से डरती थीं
अब तुम अक्सर उसमें छपाक से उतर जाती हो
मरती हो और फिर जी उठती हो
शायद तुम वाकई एक स्त्री हो...?
4 comments:
आपने तो बोलती बन्द कर दी है ।
मरती हो और फिर जी उठती हो
शायद तुम वाकई एक स्त्री हो...?
ओह!! अद्भुत!
waah!
bhavon ki bahut hi adbhut prastuti!
bahut achchee kavita.
aap ke profile mein introduction to bahut hi different hai! bilkul hat kar..rochak!
achchha likhte/likhti hain aap.
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