Monday, September 27, 2010

प्रेम- दो तरह से

कोई जरूरी तो नहीं कि तू भी सच्चा ही होता, तू भी अच्छा ही हो


तुझ पर कोई दबाव क्यों हो कि तू अच्छा ही हो, तू सच्चा ही हो
तुझमें अगर उफान उठता है
मेरा सर कुचलने का
तो क्या बुरा है
प्रेम मैने किया है गर
तो तेरा प्रेम के नाम पर खिलवाड़ करना
क्यों बुरा है
तू वैसा है
जैसा ईश्वर ने बनाया तुझे
मैं वैसा हूं
जैसा ईश्वर ने बनाया मुझे
तेरे रक्त में अगर ऊर्जा मेरी पीड़ा से है
तो तेरा ऊर्जावान होने पर
तांडव क्या बुरा है
तू जैसा है
तू वैसा है
क्योंकि ईश्वर ने तुझे ऐसा ही गढ़ा है

1 comment:

प्रशांत मलिक said...

तुझमें अगर उफान उठता है
मेरा सर कुचलने का
तो क्या बुरा है
प्रेम मैने किया है गर
तो तेरा प्रेम के नाम पर खिलवाड़ करना
क्यों बुरा है
sidhi or bebaki pasand aayi...

यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।